Thursday 15 September 2011

संकल्प शक्ति

विजय अभियान पर मिले नेपोलियन बोनापोर्ट ने एक वृद्धा से पूछा— "यह जो सामने पहाड़ खड़ा है, क्या नाम है इसका?"

"यह दुर्जेय आलप्स पर्वत है?" वृद्धा ने उत्तर दिया। "मैं अपनी सेना के साथ इसे पार करना चाहता हूं।" नेपोलियन ने कहा।

"सपना भी मत देख। मेरी उम्र इस समय अस्सी वर्ष की है। आज तक मैंने ऎसे एक भी व्यक्ति को नहीं देखा जो इसे पार कर आगे गया हो। जिसने भी इसे पार करने का दुस्साहस किया, जान गंवा बैठा।"

"मैं इसे पार करूंगा।" "यह तुम्हारी नादानी होगी। अच्छा है, वापस लौट जाओ।"
"वापस मैं नहीं लौटूंगा। तुम्हारे सामने ही मैं चढ़ाई शुरू कर रहा हूं। मैं इस पहाड़ को जल्दी ही रौंद दूंगा।" कहकर नेपोलियन ने अपने कदम आगे बढ़ा दिए और उसी के साथ सेना ने भी कूच कर दिया। नेपोलियन ने तमाम कठिनाइयां झेलकर भी अपने अदम्य संकल्प बल से आलप्स को पार कर लिया। उसकी यह साहसपूर्ण कोशिश आज भी इतिहास में अंकित है। जिस व्यक्ति, समाज और राष्ट्र का संकल्प बल मजबूत है, उसे आगे बढ़ने और विजयश्री का वरण करने से कोई रोक नहीं सकता। संकल्पशक्ति सो गई तो समझें जीवन की इतिश्री हो गई। संकल्पशक्ति से ही पैदा होती है अस्वीकार की शक्ति, त्याग की शक्ति, हेय का त्याग और श्रेय का ग्रहण। अस्वीकार की शक्ति नहीं है तो जीवन बुराइयों का घर बनता चला जाएगा।
—आचार्य महाप्रज्ञ

No comments:

Post a Comment