Thursday 15 September 2011

आतंकवाद के लिए अमेरिका भी गुनहगार


अमेरिका के वल्र्ड ट्रेड सेंटर पर हुए विनाशकारी हमले को एक दशक बीत गया। हालांकि विश्व में आतंककारी घटनाएं लगभग रोज घट रहीं हैं, पर इतनी बर्बर, भयावह और अभूतपूर्व त्रासदी शायद अब तक कहीं देखी नहीं गई। हमारे मानस पटल पर यह ह्वदय विदारक वाकया इस कदर अंकित हो चुका है कि भुलाए नहीं भूलता और यह कहना गलत ना होगा कि जिस प्रकार इस घटना ने पिछले दशक में संसार के प्रजातांत्रिक ढांचे और आम जन-जीवन को प्रभावित किया है, उतना शायद हिरोशिमा या नागासाकी में गिरने वाले बम ने भी नहीं किया था।

ग्यारह सितम्बर 2001 के आतंककारी हमले के लिए हमेशा ही कट्टरपंथी गुटों को दोषी ठहराया जाता है, पर लोग भूल जाते हैं कि इस परिणिति के लिए बहुत हद तक अमेरिका का दमनकारी व्यवहार जिम्मेवार है जिसने विश्व में अस्थिरता फैलाई है। पिछले महायुद्ध के बाद, विश्व में उभरे तमाम तनावों और युद्धों के पीछे अमेरिका का ही हाथ रहा है। अरब-इजराइल, वियतनाम, कम्बोडिया, कोरिया, इराक-ईरान, भारत- पाकिस्तान के झगड़ों से लेकर अफगानिस्तान में तालिबान की स्थापना तक, सब के पीछे अमेरिकी साजिश उजागर हुई है। इराक में सामूहिक विनाश के हथियारों की झूठी बात कह कर अमेरिका ने कैसे सद्दाम हुसैन का तख्ता पलटा? ये सब जानते हैं, पर बहुत कम लोगों को ज्ञात होगा कि इंडोनेशिया में सुकार्नो, मिस्र में नासिर और क्यूबा में फिदेल कास्त्रो को मारने के भी षडयंत्र अमेरिका द्वारा रचे गए थे। यही नहीं, ईरान के प्रधानमंत्री को अपदस्थ कर जिस प्रकार अमेरिका ने दो दशक तक शाह का उपयोग कर ईरान के संसाधनों पर कब्जा जमा लिया, वो स्वार्थपूर्ति की निंदनीय मिसाल है। इसीलिए आज जब अमेरिका तालिबान व अल-कायदा को आतंकी बताता है तो हंसी आती है क्योंकि अफगानिस्तान में सोवियत रूस से लड़ाने के लिए, तालिबान और ओसामा बिन लादेन की स्थापना भी अमेरिका द्वारा ही की गई थी। पर इस सब के बावजूद, अगर उसे सत्य और मानवीय संवेदना का सर्वश्रेष्ठ गणतंत्र बताया जाता है तो सिर्फ इसलिए क्योंकि जन प्रचार-प्रसार की अपार ताकत अमेरिकी हाथों में कैद है।

2001 के बाद, सुरक्षा के नाम पर अमेरिकी रूख ने विश्व में भय का ऎसा साम्राज्य स्थापित कर दिया है कि अब इससे निजात पाना लगभग नामुमकिन सा लगता है। दस साल बाद, मानव जीवन पहले से ज्यादा असुरक्षित हो गया है। न्यूयॉर्क हमले में मारे गए लोगों के लिए आज विश्व भर में प्रार्थनाएं की जा रही हैं, पर क्या ये वक्त उन लाखों बेकसूरों के लिए भी आंसू बहाने का नहीं है जिन्हें अमेरिकी दमनकारी नीतियों द्वारा बेवजह कुचला गया? और क्या अब समय नहीं आ गया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय तनाव का समाधान ढूंढे?
दीपक महान
वृतचित्र निर्देशक और लेखक

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