Thursday, 15 September 2011

"वन्देमातरम"

वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|

बना रहे हथियार मुझे क्यों अपनो से ही लड़ने का|


जिनने अपनाया मुझको वे सबकुछ अपना भूल गए,

मात्रु -भूमि पर जिए-मरे हंस-हंस फंसी पर झूल गए|

वीर शिवा,राणा,हमीद लक्ष्मीबाई से अभिमानी,

भगतसिंह,आजाद,राज,सुख औ बिस्मिल से बलिदानी|

अवसर चूक न जाना उनके पद-चिन्हों पर चलने का

वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|


करनेवाले काम बहुत हैं व्यर्थ उलझनों को छोड़ो,

मुल्ला-पंडित तोड़ रहे हैं तुम खुद अपनों को जोड़ो|

भूख,बीमारी,बेकारी,दहशत गर्दी को मिटाना है,

ग्लोबल-वार्मिंग चुनौती से अपना विश्व बचाना है|

हम बदलें तो युग बदले बस मंत्र यही है सुधरने का

वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|


चंदा-तारे सुख देते पर पोषण कभी नहीं देते,

केवल धरती माँ से ही ये वृक्ष जीवन रस लेते|


जननी और जन्म-भूमि को ज़न्नत से बढ़कर मानें,

पूर्वज सारे एक हमारे इसी तथ्य को पहचानें|

जागो-जागो यही समय है अपनीं जड़ें पकडनें का|

वन्देमातरम गीत नहीं मैं मंत्र हूँ जीने-मरने का|
"वन्देमातरम"

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